जय पराजय की संधि का गवाह - असीरगढ़ का किला
बुरहानपुर शहर के कण-कण में बसा हुआ है इतिहास
मध्य प्रदेश राज्य के दक्षिण एवं पश्चिम छोर पर बुरहानपुर शहर एक प्राचीन भारत के उन समृद्ध नगरों में विशेष योगदान रखता है। यहां पर विभिन्न संस्कृतियों का मिलन देखने को मिलता है। इतिहास में अपने शहर को ब्रघ्नपुर के नाम से जाना जाता था। इसका इतिहास जितना रोमांचक है उतने ही रंगो से भरा हुआ है। आओं जाने बुरहानपुर की तर्ज पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन पर्व पर किया जा रहा एक प्रयास है।
असीरगढ़ का किला-दक्षिण द्वार
हिन्दुस्तान के जिब्राल्टर के नाम से पहचाने जाने वाला असीरगढ़ का किला आसा अहीर नामक व्यक्ति द्वारा कराया गया था। यह जानकारी इतिहास के पन्नों से प्राप्त है। यह किला असीरगढ़, कमरगढ़ एवं मलयगढ़ तीन भागों में बटाँ हुआ है। इसमें पहुंचने के लिए दो रास्ते है। पहला रास्ता सीधा सीढ़ीनुमा और दूसरा रास्ता भूल-भूलैया जैसा अहसास कराता है जो कि कठिनाई और रोमांच से भरपूर है। ऊपर पहुंचने पर ऐसा लगता है मानो बुरहानपुर का इतिहास अतीत से निकलकर अपनी कहानी सुनाने के लिए खुद आ खड़ा है। किले में अहीर, फारूकी, मुगल शासन की ईमारतें, भव्य जामा मजिस्द, दक्षिण भारत शैली में निर्मित शिव मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह किला आज भी अपने वैभवशाली अतीत की गुणगाथा का गान मुक्त कण्ठ से कर रहा है। इसकी गणना विश्व विख्यात उन गिने चुने किलों में होती है जो दुर्भेद और अजय माने जाते थे। इतिहासकारों ने अपने लेखों में इसे बाब-ए-दक्खन (दक्षिण का द्वार) और कलोद-ए-दक्खन (दक्षिण की कूंजी) के नाम से उल्लेखित किया है।