रविवार, 13 अक्तूबर 2019

जिम्मेदारी के दौर में पत्रकारिता के लिए साहसिक होने की जरूरत है ।

जिम्मेदारी के दौर में पत्रकारिता के लिए साहसिक होने की जरूरत है


पाखंडी लोगों को सजा मिलती रहे और उनको शह देने वाले राजनेता शर्मसार होते रहें


न्याय और संवेदना एक दूसरे के पूरक होने चाहिए


बैतूल ।।वामन पोटे।।भारतीय संविधान हमारे देश का ऐसा पुलिंदा है जिसके अंदर सभी समाज, सभी वर्ग अपने-अपने पैरो पर खड़े रहने के लिए तैयार रहता है। राठौर समाज भी एक मजबूत आधार स्तंभ है। पत्रकारिता भी ठीक वैसा शब्द है, जैसे संविधान में न्याय और कार्यपालिका का महत्व है। दोनों के बीच कार्यपालिका को जनता और समाज के साथ जोड़ने का काम पत्रकार कर रहे हैं। यह बात लंबे समय तक नवभारत के ब्यूरोचीफ रहे और जिले के वरिष्ठ पत्रकार प्रहलाद वर्मा ने जिला क्षत्रिय राठौर समाज द्वारा माईड्स आई इंटरनेशनल स्कूल में पत्रकारों के सम्मान समारोह में व्यक्त किए। कार्यक्रम में समाज के बड़ी संख्या में लोगों के अलावा जिला मुख्यालय के  पत्रकार मौजूद थे। सभी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इससे पहले कार्यक्रम की शुरूआत वरिष्ठ पत्रकार प्रहलाद वर्मा और इंदरचंद जैन ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर की। राठौर समाज द्वारा आयोजित कार्यक्रम के शुरूआत में राष्ट्रगान भी हुआ। वरिष्ठ पत्रकार श्री वर्मा और श्री जैन का स्वागत राठौर समाज के जिलाध्यक्ष , संरक्षक एवं पूर्व विधायक शिवप्रसाद राठौर, ने फूलमालाओं से किया। वरिष्ठ पत्रकार श्री वर्मा ने इस कार्यक्रम में अपने संबोधन में  कहा कि भारतीय इतिहास में कहीं न कहीं भारत के बलिदान में बैतूल के आदिवासियों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सुरेश वाजपेयी जैसे पत्रकार अपने समय में इसके लिए खूब आवाज उठाई। उस समय भोपाल और नागपुर के अखबार पार्सल से बैतूल आते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। आज नई पीढी आ चुकी है। खुशी उस समय होती है जब बैतूल के समाचार टीवी पर देखने को मिल जाते हैं। उन्होंने पुरानी बातों का उल्लेख करते हुए बताया कि 25 पैसे का लिफाफा लेकर अखबारों में खबर भेजने के लिए लालायित रहते थे। आज संसाधन बढ़ गए हैं। हमारे लिए उस समय पोस्ट आफिस के बाबू कलेक्टर से बड़े होते थे, लेकिन सहयोग देने में कभी पीछे नहीं हटते थे। अब पांच रूपए से 10 रूपए के दाम में अखबार मिल रहा है। अखबारों की स्थिति पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि हालात बदल रहे हैं कई जगह कागज का खर्च नहीं निकलता, अखबार चलाना और उसे मेंटेन करना कठिन काम है। उन्होंने युवा पत्रकारों को सीख देते हुए कहा कि गरीबी शब्द का उल्लेख अब नहीं करना चाहिए, क्योंकि अब यह शब्द जरूरतमंद हो चुका है। किन्हीं जरूरतमंदो को प्रशासन और शासन से योजना का लाभ दिलाकर पत्रकार सेतु का काम करें। 


।।प्रशिक्षण की अहम जरूरत।।


वरिष्ठ पत्रकार प्रहलाद वर्मा ने कहा कि आज की पत्रकारिता में पठन-पाठन का अभाव झलकता है। जरूरत है कि प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए जिसमें जिले के वे सीनियर पत्रकार जो आज भी कार्य कर रहे हैं उनके माध्यम से नई पीढ़ी को खबरें लिखने से लेकर समाज को कुछ देने के गुर सीखने होंगे। उन्होंने कहा कि दुख तो तब होता है जब मात्र 80 हजार रुपए के आवंटन से हाेने वाले कार्य में लाखों के भ्रष्टाचार का समाचार अखबार के पन्ने पर दिखाई देता है। यह बेहद चिंतनीय है क्याेंकि पत्रकार ही है जो समाज की ताकत के रूप में सबसे सामने खड़ा होता है और शासन-प्रशासन को जरूरतमंदों के लिए कार्य करने के लिए मजबूर कर देता है।
सांसद दिल्ली में ज्ञापन सौंपते हैं और खबरें बैतूल से छपती हैं
श्री वर्मा ने पत्रकारों को सीख देते हुए कहा कि हैरानी होती है कि सांसद दिल्ली में जाकर ज्ञापन देते हैं लेकिन उनकी खबर बैतूल डेटलाइन से लगाई जाती है। आखिर ऐसा क्यों...अखबारों या फिर चैनलों के दिल्ली या फिर भोपाल के कार्यालय जाकर ज्ञापन देने की खबरें दी जानी चाहिए। उन्होंने प्रशासन द्वारा समस्या निवारण शिविर लगाए जाने और उनमें आने वाली शिकायतों को लेकर भी प्रशासन के कामकाज पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि समस्या निवारण शिविर में नामांतरण, राशन कार्ड बनाने जैसी समस्याएं हल करने को अपनी उपलिब्ध बताने वाले प्रशासन से यह सवाल होना चाहिए कि नामांतरण या फिर बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए जिन कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन मिल रहा है आखिर उन्होंने काम क्यों नही किया। यदि वे अपना काम इमानदारी से करते तो शायद आज शिविर की जरूरत ही नहीं होती।
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जब तक जन संवेदनशील नहीं होगा।  
पत्रकारिता का काम जोखिम भरा हो गया है फिर  भी साफ सुथरी विचार धारा जीवित रखना जरूरी है ताकि लोकतंत्र बरकरार रहे। धर्मांधता की आड़ में घिनौने काम करने वाले धर्म की आड़ और पाखंडी लोगों को सजा मिलती रहे और उनको शह देने वाले राजनेता शर्मसार होते रहें। छोटे शहरों में पत्रकारिता करना बेहद जोखिम भरा है। बड़े शहरों में कॉरपोरेट स्तर पर पत्रकारिता का काम हालांकि इतना जोखिम भरा नहीं है लेकिन पिछले कुछ दिनों से वहां भी पत्रकारिता करना जोखिम भरा हो गया है। कई  पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है जबकि पत्रकार फ्रीडम में हमारा स्थान विश्व में 136वां है। हैरत की बात तो यह है कि हम ऐसे जिले में पत्रकारिता कर रहे हैं जहां लोकतांत्रिक मूल्यों को खुद संवैधानिक पदों पर बैठे लोग चोटिल कर रहे हैं। ऐसे में पत्रकारिता के लिए चुनौतियां बड़ी हैं और इस बड़ी जिम्मेदारी के दौर में पत्रकारिता के लिए साहसिक होने की जरूरत है। पत्रकारों को ऐसे समयों में चारण नहीं होना है। 
न्याय और संवेदना एक दूसरे के पूरक होने चाहिए। न्याय लोकतंत्र का महत्वपूर्ण भाग है। लेकिन जितनी समानता संविधान में है उसे लागू करने वाले उतने समानता पसंद नहीं हैं। ठीक यही स्थिति न्याय को लागू करने वालों की है। न्याय, संविधान और व्यवस्था तब तक बेहतर रूप में लागू नहीं होगी जब तक जन संवेदनशील नहीं होगा। 


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