शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

पुलिस और राजनीति- पुलिसकर्मी उच्चाधिकारियों से ज्यादा अपने राजनैतिक आकाओं की सुन रहे हैं 

पुलिस और राजनीति-


पुलिसकर्मी उच्चाधिकारियों से ज्यादा अपने राजनैतिक आकाओं की सुन रहे हैं 


सत्तासीन लोगों को भी यह समझना होगा कि बेहतर पुलिस व्यवस्था दबाव बनाकर नहीं बनाई जा सकती


बैतूल । वामन पोटे।।मध्यप्रदेश में सत्ता किसी भी दल की रही हो राजनीतिक फायदे के लिए थानों में पुलिस का डंडा ज्यादातर मामलों में राजनेताओं की शह पर ही चलता है। पुलिस के कार्यो में बढ़ती राजनैतिक दखलंदाजी चिंता का विषय है। अपने राजनैतिक आकाओं की सरपरस्ती के चलते मातहत अपने उच्चाधिकारियों की बातें भी नहीं सुन रहे हैं। हाल यह है कि अब मुकदमे दर्ज करना न करना अधिकारी नहीं बल्कि राजनेता तय करने लगे हैं। समझा जा सकता है कि जिस पुलिस पर पूरे प्रदेश की आम जनता, राजनेता  और अधिकारियों की सुरक्षा का जिम्मा है वह खुद कितनी असहाय साबित हो रही है। यदि पुलिस राजनेताओं के इशारों पर ही चलने लगेगी तो फिर इससे पारदर्शिता की क्या उम्मीद की जा सकती है । इसी के चलते गैर कानूनी धंधे धड़ल्ले से चलते है । दरअसल, पुलिस विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप होना कोई नई बात नहीं है। पहले भी पुलिस में राजनीतिक दखलंदाजी होती थी लेकिन यह तबादलों तक ही सिमटी हुई थी। यदाकदा अपने कार्यकताओं पर छोटे-मोटे मुकदमों को लेकर नेता पुलिस का सहयोग लेते थे मगर अब हालात तेजी से बदलने लगे हैं। अपने राजनीतिक फायदे- नुकसान के लिए अब राजनेता पुलिस का इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं। अच्छे जिले अथवा थाने-चौकियों की चाह रखने वाले पुलिसकर्मी अपने उच्चाधिकारियों से ज्यादा अपने राजनैतिक आकाओं की सुन रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उच्चाधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है मगर वे भी अपने को बेबस सा महसूस कर रहे हैं।कई पुलिस अधिकारियों ने तो राजनीतिक दबाव की बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा भी है, लेकिन इसमें भी उन्होंने अपने ही विभागीय कर्मचारियों पर ही अंगुली उठाई है। यह स्थिति मध्यप्रदेश के लिए किसी भी मायने से उचित नहीं कही जा सकती। सरकार निश्चित रूप से अपने पसंद के अधिकारियों को ही महत्वपूर्ण ओहदों पर तैनात करती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि अब थाने स्तर पर तैनाती के लिए राजनीतिक दबाव डाला जाए। सरकार व जनप्रतिनिधियों को पुलिस को अपने इशारों पर नचाने की सोच को बदलना होगा। यदि सरकार सही मायनों में प्रदेश सहित बैतूल जिले की सुरक्षा मजबूत करना चाहती हैं तो उसे पुलिस के कार्यो में अनावश्यक दखलंदाजी से बचना होगा। तबादलों में वरिष्ठता और अनुभव को तरजीह देने के लिए नियमावली बनानी होगी। बेहतर काम करने वालों को आगे बढ़ने के अवसर देने होंगे। पुलिस को दबाव मुक्त होकर कार्य करने के लिए उचित कदम उठाने होंगे तभी प्रदेश में बेहतर पुलिसिंग की उम्मीद की जा सकती है।
राजनीतिक दबाव पुलिस कर्मियों को तनाव में जाने पर मजबूर कर देता है। उनके मुताबिक काम का दबाव और नेताओं की रोज रोज की चकल्लस ने पुलिस अधिकारियों की सहनशक्ति को बहुत कम कर दिया है। पुलिस अब राजनेताओ के  हितों की चिंता करती है पुलिस का संयुक्त परिवार अब टूट सा गया है। 
इसके चलते अब कम पढ़ा लिखा या गांव का युवा पुलिस को 'द्रौपदी' कहता हैं। वह ऐसा इसलिए भी कहते हैं कि पुलिस ही है जो सबके प्रति जवाबदेह है, फिर चाहे वह राजनेता हों, जनता हो, आरटीआई के सवाल हों, अदालतें हों या मानवाधिकार कार्यकर्ता हों। वह कहते हैं कि ये स्थितियां निश्चित ही चिंता का कारण बनती हैं। ये स्थितियां केवल कार्यक्षेत्र ही नहीं बल्कि, पारिवारिक विवाद का कारण भी बनती हैं। 
पुलिस पर राजनीतिक दबाव सबसे ज्यादा रहता है। चुटकी बजाते ही अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है। स्थितियों का समाधान पुलिसकर्मी ही कर सकते हैं। उन्हें गलतियों के विरोध में खड़ा होना होगा। वहीं, सत्तासीन लोगों को भी यह समझना होगा कि बेहतर पुलिस व्यवस्था दबाव बनाकर नहीं बनाई जा सकती। इसके लिए उन्हें पुलिस व उसके अधिकारियों के साथ सहयोग करना होगा।


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