भोपाल- बाघ पुन:स्थापना के 10 वर्ष पूरे होने पर वन विभाग, जैव-विविधता बोर्ड और डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. इण्डिया द्वारा 20 से 26 दिसम्बर तक आयोजित पन्ना टी-3 वॉक का आज समापन हुआ। सात चरणों में हुई वॉक में देशभर के 50 से अधिक वन्य-प्राणी विशेषज्ञ और बाघ प्रेमियों ने भाग लिया। पन्ना पी-3 वॉक सागर, पन्ना, छतरपुर और दमोह जिले के उन्हीं इलाकों से गुजरी, जहाँ 10 साल पहले पेंच से आया बाघ टी-3 वापस लौटने के प्रयास में गुजरा था। पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने 70 वन अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम और 4 हाथियों के साथ 19 दिन में इसे वापस पन्ना लाने में सफलता हासिल की थी। यह एक ऐतिहासिक दिन था, क्योंकि इस वापसी के कारण ही आज पन्ना में 55 बाघ हैं।
पन्ना टी-3 की वापसी की दशक पुरानी यादों को किया ताजा
पन्ना टी-3 वॉक का उद्देश्य देश-विदेश के पर्यावरणविद्, शिक्षाविद् और जन-सामान्य को पन्ना बाघ पुन:स्थापना के लिये किये गए प्रयासों से अवगत कराना है ताकि इनकी संख्या को विश्व में पुन: बढ़ाया जा सके। पन्ना टी-3 वॉकर्स ने 20 दिसम्बर को हुए पहले चरण में 12 किलोमीटर की यात्रा में बाघ टी-3 का ट्रेक देवरादेव, गेहारीघाट, एस्केप प्वाइंट, दूसरे दिन 10 किलोमीटर का माटीपुरा, रायपुरा, टी-3 का फाइनल एस्केप प्वाइंट, तीसरे दिन 10 किलोमीटर का लम्पटी नाला, नयाखेड़ा, जहाँ उसके पहली बार पगमार्क मिले थे, चौथे दिन 10 किलोमीटर का नैनागिरि और सगुनि वन, जहाँ लोगों ने टी-3 बाघ को देखा था, पाँचवें दिन 15 किलोमीटर का नैनागिरि से रमना, पतरीकोट जहाँ से उसको पहली बार लाने के प्रयास किये गए। पन्ना टी-3 वॉकर्स ने छठें दिन तेंदूखेड़ा डिपो से हिनौता (पन्ना) तक 10 किलोमीटर का रास्ता तय किया और बाघ को गन्ने के खेत में घेर कर बेहोश करने की घटना की यादें साझा कीं।