सोमवार, 13 जनवरी 2020

अर्वाचीन गूंज-2020 में धरा की चिंता और धारा के दर्द को जाना*


बुरहानपुर।(मेहलका अंसारी) शहर की जानी-मानी शैक्षणिक संस्था अर्वाचीन इंडिया स्कूल में सांस्कृतिक संध्या ‘‘अर्वाचीन गूंज‘‘-2020 का भव्य आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम एक संदेश के साथ प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम की थीम थी-धरा के अंतर्मन से। ब्रह्मांड के सबसे अनूठे ग्रह पृथ्वी की चिंता को बहुत ही कलात्मक रूप से छात्रों ने मंच पर उकेरा एवं सौगंध ली कि धरती से पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त करने की हरसंभव कोशिश करेंगे।



प्रभु के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत हुई। धरा ने तो अपनी कहानी, अपनी चिंता को प्रकट कर दिया, किंतु अब महति जिम्मेदारी हम पर ये है कि हम कुछ सार्थक नियमों को अपने जीवन में शामिल कर लें जैसे-प्लॉस्टिक बैग की जगह कपड़े के थैली लेकर ही बाजार जाए, एवं जल, थल, नभ को प्रदूषण रहित करें। पृथ्वी पर पेड़-पौधों की उत्तपत्ति से मानव के जन्म और आज तक की यात्रा को एक सुंदर धारा में प्रस्तुत किया गया। नन्हें अर्वाचियन्स ने एक से बढ़कर एक आकर्षक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देकर सभी का मनमोह लिया। विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा, कला एवं सृजनात्मक क्षमताओं का परिचय दिया।



कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश की पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने की। मुख्य अतिथि के रूप में कलेक्टर राजेश कुमार कौल, निवृत्तमान नगर निगमाध्यक्ष मनोज तारवाला ने शिरकत की। इस दौरान भव्य मंच व अर्वाचीन सिम्फनी-अर्वाचीन बैंड मुख्य आकर्षण का केन्द्र रहा। समारोह मेें बुरहानपुर के साथ खंडवा एवं महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों से नागरिकों सहभागिता की।



श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने कहा कि विद्यालय और शिक्षकों को, बच्चों के दिमाग से ज्यादा उनके मन, उनके दिल पर काम करना जरूरी हैं। वे विशाल हृदय के हो, इतनी संवेदना हममें और उनमें हो कि भूलकर भी हमारे द्वारा किसी का मन ना दुखे और हम दूसरों के लिए समाज के लिए जिऐं। हमें अंग्रेजी तो आना चाहिए पर हिन्दी से हमें पागलों की तरह प्यार होना चाहिए। बच्चों को भारतीयता सिखाएं। श्रीमती चिटनिस ने कहा कि आज की शिक्षा केवल सूचना बनकर रह गई है। इसलिए इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि यह शिक्षा केवल सूचना न बने। बच्चों को सोचना सीखाए, प्रेम करना सीखाए, सबको जोड़ना सीखाए। उन्होंने कहा कि स्कूल चलाना उससे भी बड़ी बात है। बच्चे को जन्म देना बड़ी बात है, लेकिन उसकी परवरिश करना उससे भी बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि जिस पर ईश्वर भरोसा करते हैं उन्हें माता-पिता बनाते हैं और जिस पर ज्यादा विश्वास करते हैं, उन्हें शिक्षक और जिस पर अंधा विश्वास करते हैं, वे स्कूल चलाते हैं। इसलिए स्कूल की पढ़ाई सही होना चाहिए।



श्रीमती चिटनिस ने कहा कि बच्चों को बहुत प्यार दो लेकिन नंबर के लिए दबाव मत दो। उन्हें जो मिलेगा वहीं दुनिया को वे दे पाएंगे। आज का समय पढ़ाई लिखाई में इतने चौलेंजस का टाइम है कि पहले कभी नहीं था। सोशल मीडिया, मीडिया है। बच्चे की शरीर की आयु 6 साल की है लेकिन उसकी बुद्धि की आयु 25 साल की हो गई है। ऐसे में बच्चों को बड़ा करना बहुत मुश्किल काम है। इसलिए बच्चे को सबसे पहले डॉक्टर, इंजीनियर, वकील बनाने से पहले अच्छा इंसान जरूर बनाए।
कलेक्टर राजेश कुमार कौल ने कहा कि विद्यार्थी जीवन में शिक्षा बेहद जरूरी है। राष्ट्र की धन संपदा बैंकों में संचित नहीं होती है, बल्कि विद्यालयों में बच्चें प्रतिभा के रूप में है। उन्होंने बच्चों को प्रेरित करते हुए कहा कि शिक्षा और खेल दोनों को एक साथ लेकर चलने का प्रयास करना चाहिए ताकि दोनों में संतुलन बना रहे। शिक्षा के साथ-साथ खेलों की गतिविधियां भी जरूरी है।
निवृत्तमान नगर निगमाध्यक्ष मनोज तारवाला ने कहा कि विद्यालय प्रबंधन की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि आपने अर्वाचीन इंडिया स्कूल के रूप में ज्ञान का प्रकाश चहुंओर फैलाने के लिए एक दीपक जलाया है जो हजारों विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य एवं उनके चहुॅंमुखी विकास का साक्षी बनेगा। ऐसे मेरे इस मंच से आपके प्रति आशीर्वचन हैं। यह विद्यालय अपने विद्यार्थियों को प्राचीनता के साथ आधुनिकता की ओर अग्रसर करेंगा। मैं भगवान से यही प्रार्थना करूंगा की स्कूल खूब आगे बढ़े और अपना नाम देश में रोशन करंे।
संस्था की प्रमुख शैक्षणिक वरिष्ठ सलाहकार श्रीमती कला मोहन ने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ कलात्मक गतिविधियों से छात्रों का सर्वांगीण विकास होता है। अर्वाचीन इंडिया स्कूल की ये हमेशा से ही कोशिश रही है कि बच्चों के एक हाथ में शिक्षा और दूसरे हाथ में रचनात्मक विधा का सही तालमेल हो। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से छात्रों में नैतिकता, संस्कार और संस्कृति के बीज पनपने लगते है। उनमें शिशु अवस्था से ही देश-प्रेम, समाज-प्रेम के अंकुर फुटने लगते है। इस बार विद्यालय ने ‘धरा के अन्तर्मन से‘ थीम पर सारी प्रस्तुतियाँ देकर समाज में एक संदेश दिया हैं। क्योंकि अब ये बात हमें विश्व को समझानी है कि यदि हम अब नहीं सम्भले, तो हमारा फैलाया प्रदूषण हमें और हमारे प्यारे ग्रह का सर्वनाश कर देगा। ब्रह्माण्ड के इस अद्वितीय, अनूठे ग्रह से जीवन सदा-सदा के लिए मिट जाएगा। अर्वाचीन परिवार  का आप सबसे सादर आग्रह है कि हम सब धरा के दर्द को समझें और उसे दूर करें।



संस्था अध्यक्ष श्रीमती राखी मिश्रा ने विद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मशीनी रोबोट बनने के बजाय हमारे बच्चे संवेदनशील इंसान बने, ये हमारा ध्येय है और हमारे प्रयास इसी दिशा में है। पालक-बालक और शिक्षक की त्रिवेणी से ही शिक्षा संपूर्ण होती हैं और बालक का संपूर्ण विकास पालक और शिक्षक के सार्थक मेल के बिना अधूरा है। उन्होंने विद्यार्थियों की उपलब्धियों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षा एवं खेल के क्षेत्र में मिली सफलता विद्यार्थियों की मेहनत, शिक्षकों के मार्गदर्शन एवं स्कूल प्रबंधन अभिभावकों के सहयोग से संभव हुआ है। बच्चों की प्रतिभा निखारने के लिए स्कूल में समय-समय पर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। हमारे अपने शहर की ऐतिहासिक धरोहरों और उनके इतिहास को हमारे बच्चों ने जाना, समझा। हमारा आशय यह था कि हमारे बच्चे अपनी इतिहास, अपनी संस्कृति को जाने और उस पर गर्व करें और हमारा यह प्रयास सफल रहा।
संस्था सचिव अमित मिश्रा ने कहा कि इस वर्ष शैक्षणिक स्तर को और बेहतर बनाने के लिए बहुत कुछ किया गया है और अगले वर्ष अर्वाचीन के नॉलेज पार्टनर क्रिसलिस व कॉम्पेटेटीव पार्टनर नारायणा ग्रुप होंगे। वर्तमान में खेल-कूद पार्टनर है एडुयुस्पोर्ट। शाला के विद्यार्थियों ने खेल तथा संगीत के क्षेत्र में भी अनेक उपलब्धियां हासिल की, अर्वाचीन इंडिया स्कूल ने अणुव्रत गीत गायन में प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
प्राचार्य उज्जवल दत्ता ने कहा कि कार्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों में निश्चित रूप से राष्ट्रीय एवं भारत की हजारों वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत से अगाढ़ प्रेम की भावना का संचार हुआ हैं। हमारे बच्चें अर्वाचीन याने कि आधुनिक बने पर देश के प्राचीन इतिहास से भी बहुत कुछ सीखें एवं इसका लाभ लेवे। वे अन्य भाषा के साथ-साथ उस भाषा को भी सीखे जो वे दैनिक जीवन में बोलते है। ‘‘अर्वाचीन गूंज‘‘ वास्तव में हमारे सुरों का संगम है जीवन संगीत के सुरों की तरह है। हर सुर अपनी एक विशेेषता बताता है। विद्यार्थियों ने अपनी मेहनत, लगन एवं प्रतिभा को इस गूंज के माध्यम से प्रस्तुत किया।
संस्था के जनसंपर्क अधिकारी मिर्जा राहत बेग ने बताया कि अर्वाचीन सांस्कृतिक संध्या ‘‘अर्वाचीन गूंज‘‘ का भव्य आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर की गई। तत्पश्चात ‘‘अर्वाचीन गूंज‘‘ का शुभारंग-शंखनाद हुआ। स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा संगीतमय नाटक, शास्त्रीय नृत्य, लोकनृत्य, नृत्य एवं विभिन्न रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई। विद्यार्थियों द्वारा धरा के अंतर्मन से, ग्रामीण संस्कृति की मासूम झलक, और सारे फूल खिल उठे, पक्षियों का कलरव, जंगल-जंगल, मंगल-मंगल-मंगल, मनुष्य का धरा अवतरण, अंगलिका-बंगलिका अर्वाचीन का जादू है, प्रकृति की झंकार, भारत में महाभारत, महाराज रंजीतसिंह, आधुनिक भारत के कर्णधार, सेलफोन एडिक्शन, प्रदूषण द्वारा विनाश का तांडव, कार्बन-ऑक्सीजन, धरती मेरी मां है..., प्लॉस्टिक पर कव्वाली सहित अनेक प्रस्तुतियां हुई। अंत में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् का गायन हुआ।
कार्यक्रम का सफल संचालन श्रीमती अंजलि पिंपलीकर ने किया एवं आभार हेड बॉय खुशाल जैन ने माना।


 


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