बुरहानपुर (मेहलका अंसारी) लाक डॉउन, कर्फ्यू आदेश का उल्लंघन, बिना मॉस्क के निकलना, एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करते हुए संक्रमण को फैलाना आदि के आरोप में जमीला प्रतिशत शब्बीर, संगीता पति शकील, सौम्मी उर्फ शम्मी पति कलीम हममाल, मुमताज पति मोलूतू, नसीम (अप्पू की माता), जोया पति शब्बीर, सईदा (बलिया की मां), रहनुमा ( इक्कू की मां), रुबीना पति शेख बीसल आदि पर थाना शिकारपुरा में अपराध क्रमांक 267/2020 अंतर्गत भादवि धारा 269, 270, 188 एवं मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ एक्ट, आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया है। हालांकि सरकारी प्रेस नोट में इस बात का दावा किया गया है कि राशन वितरण नहीं होने की बात को लेकर जानबूझकर इन महिलाओं में विधि के विरुद्ध यह कार्य कारित किया है। प्रेस नोट में यह भी बताया गया कि इन महिलाओं के गृहस्थ जीवन की जांच करवाई गई और आर्थिक रूप से सक्षम पाई गई हैं। शेेष महिलाओं की भी शिनाख्त की जा रही है और जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जाएगा। प्रेस नोट में कलेक्टर बुरहानपुर के हवाले से कहा गया है कि किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा और सख्त से सख्त कार्रवाई की जावेगी। हालांकि 10 मई 2020 को सोशल मीडिया के माध्यम से जिले के पुलिस कप्तान ने आंदोलन कर रही महिलाओं को चेताया था कि वे अपनी समस्याओं को लिखित रूप से मौके पर तैनात पुलिस अधिकारियों कर्मचारियों और राजस्व विभाग के अधिकारियों को दें । उनकी बात को कलेक्टर बुरहानपुर के समक्ष पेश करके उसका समाधान निकाला जाएगा। पुलिस कप्तान की अपील के 1 दिन बाद आंदोलनरत महिलाओं पर अपराध पंजीबद्ध कर लिया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि शायद पुलिस प्रशासन ने जल्दबाजी ने यह निर्णय लिया है। जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन यदि संवेदनशील होता और पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन चाहता तो मुस्लिम धार्मिक उलेमाओं, मुस्लिम जनप्रतिनिधियों और मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं को मध्यस्थ बनाकर इस समस्या का आसानी के साथ समाधान निकाला जा सकता था। जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन हर मामले में शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर के पेश इमाम हजरत सय्यद इकरामुल्लाह बुखारी एवं अन्य धार्मिक नेता जैसे मौलाना कलीम अशरफ अशरफी, मुफ्ती रहमतुल्लाह कासमी, कारी अब्दुल रशीद, मुस्लिम जनप्रतिनिधियों में नफीसा मंशा खान, वाजिद इकबाल आदि से निरंतर संपर्क में रहते हैं। इस मामले में ऐसी पहल क्यों नहीं की गई कि मुस्लिम गणमान्य नागरिकों को मध्यस्थ बनाकर इस मामले का निराकरण किया जाए। पुलिस प्रशासन हमेशा सामाजिक दायित्व का भली-भांति निर्वहन करती है । लेकिन इस मामले में इस पहलू को विचारण में क्यों नहीं लिया गया ? यह प्रश्न हर जनमानस के मन मस्तिष्क में उभर रहा है और यह भी प्रश्न उभर रहा है कि हमारे मुस्लिम जनप्रतिनिधि, मुस्लिम उलेमा, सामाजिक कार्यकर्ता इस मामले में मौन क्यों हैं ?